शिखर पर तमाम जगह खाली है लेकिन वह पहुचने की लिफ्ट कही नहीं है वहां एक एक कदम सीढ़ियों के रस्ते ही जाना होगा

Wednesday, December 15, 2010

सुरक्षा व्यवस्था तार तार



इश्वर चन्द्र उपाध्याय

पहले दशाश्वमेध घाट फिर बारी आयी संकट मोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन की उसके बाद कचहरी ओर अब प्राचीन दशाश्वमेध यानी शीतला घाट बना पाक परस्त आतंकियों का निशाना। 2005 से अब तक 5 बड़ी आतंकी वारदात

रह रह कर तार तार हो जा रही है बनारस की सुरक्षा, काशी में सुरक्षा का ये हाल तब देखने को मिल रहा है जब ना सिर्फ प्रदेश में बल्की पूरे देश भर के अति संवेदनशील जिलों की सूची में इसका नाम दर्ज है, दूसरी तरफ तेज तर्रार अधिकारियों की पूरी मशीनरी दिनरात जनपद की जिम्मेदारी संभाले हुए है, भारी भरकम गुप्तचरों का अमला है, तो वहीं दिल्ली से भी लगातार खूफिया निगेहबानी की जद में रहता है बनारस। इतने ताम झाम के बावजूद इतनी बड़ी आंतंकी वारदात का घट जाना सचमुच सोचने पर मजबूर करता है।

6 दिसंबर को पूरे देश भर में जारी एलर्ट के अगले ही दिन वाराणसी के शीतला घाट का बम धमाके से दहल जाना सबको हैरत में डालने के लिए काफी था, घटना के अगले ही दिन देश के गृह मंत्री पी चिदंबरम साहब ने शीतला घाट का भी दौरा किया और पत्रकारों से बातचीत के दौरान बताया कि आई बी ने घाटों पर हमले को लेकर पहले ही एलर्ट जारी किया था।

अब जबकी शहरे बनारस में आतंकी विस्फोट की ये चौथी वारदात हो चुकी है और इस वारदात की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिद्दीन नामक आतंकी संगठन ने भी ले ली है तो सवाल ये उठता है कि सुरक्षा में हुई चूक की जिम्मेदारी कौन लेगा, ऐसे समय जब पाक के छद्म हमलावर पूरे देश को निगल जाने की फिराक में लगें हैं लखनउ और दिल्ली की इमारतों में रार ठनी हुई है।

बहरहाल शीतला घाट बम धमाके की फोरेसिक जाच शुरू हो चुकी है, और धमाके के बाद इससे जुड़ी तमाम तकनीकी बातें एक के बाद एक सामने आने लगेंगी...वहीं खूफिया विभाग की कसरतों के जरिये आतंकियों का पता भी लगाया जा सकता है लेकिन क्या कोई जिम्मेदार ये बताएगा कि आखिर कब तक आतंक के साये में जीते रहेंगे हम। क्या सरकारें आतंकी तांडवों के सामने मूक दर्शक ही बनी रहेंगी। और आखिर कब तक आतंक के विरूध्द लड़ाई को वोट बैंक के नफा नुकसानों से तौला जाएगा।

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