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Thursday, May 20, 2010

राष्ट्रमंडल खेल: सज रही दिल्ली उजड़ रहे गरीब



अवनीश सिंह

जैसे-जैसे कॉमनवेल्थ गेम्स की घडियां नजदीक आती जा रही हैं, वैसे-वैसे खेल से जुडी परियोजनाओं के आयोजकों की परेशानी बढती जा रही हैं। दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के लिये राजधानी को सुंदर बनाने के नाम पर 20 लाख से अधिक मजदूरों को काम में लगाया गया है।

सूचना का अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार, निर्माण में लगे मजदूरों के पसीने से दिल्ली चमक रही है और इनके नाम पर सरकार ने उपकर लगाकर अपने खजाने में 500 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि इकट्ठा कर ली है। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक ग़रीबी उन्मूलन की योजनाओं से करोड़ों रुपए की धनराशि दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में लगाई जा रही है।

ज्ञातव्य है कि निर्माण में लगे मजदूर एवं उनके परिवारों के कल्याण के लिए दिल्ली सरकार ने वर्ष 2002 में दिल्ली भवन एवं सन्निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड का गठन किया था, जिसकी जिम्मेदारी मजदूरों का बोर्ड में पंजीकरण करवाना और उनके लिए कल्याणकारी योजना बनाकर क्रियान्वित करना है। इसके लिए सरकार को अलग से धनराशि की व्यवस्था भी नहीं करनी है। क्योंकि दिल्ली में हो रहे सभी निर्माण कार्य चाहे वे सरकारी एजेंसी द्वारा किए जा रहे हों या गैर सरकारी एजेंसी द्वारा, उनके निर्माण लागत का एक प्रतिशत उपकर के रूप में निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड में जमा कराने के निर्देश हैं। अब तक कॉमनवेल्थ गेम्स के निर्माण स्थल पर 20 लाख मजदूरों में से केवल दस से पंद्रह प्रतिशत मजदूरों का ही पञ्जीकरण रजिस्ट्रेशन किया गया।

राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन जिसके लिए कई वर्षों से बड़ी धूमधाम से तैयारी चल रही है। भारत सरकार और दिल्ली सरकार ने इन खेलों के समय पर निर्माण कार्य पूरा करने के लिए पूरी ताकत और धन झोंक दिया है। एक अनुमान के मुताबिक, इसमें कुल एक लाख करोड़ रूपये खर्च होंगे। कहा जा रहा है कि यह अभी तक के सबसे महंगे राष्ट्रमंडल खेल होंगे। यह भी तब जब भारत प्रति व्यक्ति आय और मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से दुनिया के निम्नतम देशों में से एक है। विश्व भूख सूचकांक में हमारा स्थान इथोपिया से भी नीचे है एवं ७७ प्रतिशत के लगभग भारत की जनसंख्या २० रूपये रोजाना पर गुजर-बसर करने पर मजबूर है।

दूसरी ओर हमारे देश में लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं। आज दुनिया के सबसे ज्यादा भूखे, कुपोषित, आवासहीन एवं अशिक्षित लोग भारत में रह रहे हैं। गरीबों को सस्ता राशन, बिजली, पेयजल, इलाज के लिए पूरी व्यवस्था, बुढ़ापे में पेंशन और स्कूल में पूरे स्थाई शिक्षक और भवन व अन्य सुविधाएं देने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। फिर सरकार के पास इस बारह दिवसीय आयोजन के लिए इतना पैसा कहां से आया?

ग़रीबी उन्मूलन की योजनाओं के करोड़ों रुपए को राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में लगाये जाने की रिपोर्ट 'हाउसिंग ऐंड लेंड राइट्स नेटवर्क' नामक संस्था ने तैयार की है। संस्था का कहना है कि उसने इस बारे में सूचना का अधिकार क़ानून के तहत सरकार से जानकारी उपलब्ध की है। इसके मुताबिक ग़रीबी उन्मूलन की योजनाओं से करोड़ों रुपए की धनराशि दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में लगाई जा रही है।

यह रिपोर्ट केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को कटघरे में खड़ा करती है और राष्ट्रमंडल खेलों के लिए योजनाएँ बनाने और धन जुटाने के तरीक़ों पर सवाल खड़े करती है। रिपोर्ट के मुकाबिक, समाज के पिछड़े तबकों और ग़रीब वर्ग की मदद के लिए रखे गए करोड़ों रुपयों की राशि को इन आयोजनों में लगाया जा रहा है। संस्था ने इस पूरे मामले की स्वतंत्र जाँच की मांग की है। दिल्ली में सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वे इन आरोपों पर ग़ौर कर रहे हैं।

राष्ट्रमंडल खेलों से संबंधित परियोजनाओं के कारण एक लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रमंडल खेलों पर हो रहा ख़र्च नियंत्रण के बाहर चला गया है और खेलों का बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए पहले प्रस्तावित राशि के मुकाबले में अब 2000 प्रतिशत से भी अधिक बढ़ोत्तरी हुई है।

साथ ही खेलों की वजह से एक लाख से अधिक लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, इस साल अक्तूबर में शुरु होने वाली खेलों से पहले 40 हज़ार और परिवार विस्थापित हो सकते हैं। इस रिपोर्ट को सयुंक्त राष्ट्र के एक पूर्व मानवाधिकार अधिकारी मिलून कोठारी ने तैयार किया है। उन्होंने एक रेडियों वार्ता में बताया कि संस्था के पास इन आरोपों की पुष्टि करने के लिए स्पष्ट सबूत हैं। कोठारी के मुताबिक, दिल्ली को एक विश्व-स्तर के शहर के रुप में दिखाने की होड़ में सरकार लोगों के प्रति अपनी क़ानूनी और नैतिक प्रतिबद्धता को भूल रही है।
नई दिल्ली। 15 मई, 2010

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