शिखर पर तमाम जगह खाली है लेकिन वह पहुचने की लिफ्ट कही नहीं है वहां एक एक कदम सीढ़ियों के रस्ते ही जाना होगा

Wednesday, June 16, 2010

गोवंश आधारित अर्थ-व्यवस्था के लिए आगे आएं उद्योगपति



आज देश में गोरक्षा के अनेक प्रयास हो रहे हैं। देश के अनेक राज्यों ने गोवंश बंदी के कानून भी पारित किए हैं। हाल ही में कर्नाटक राज्य ने भी विधानसभा में गोवध बंदी का ऐतिहासिक कानून पारित कर दिया। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि देश के उन राज्यों में जहां पहले से गोहत्या बंदी के कानून बने हुए हैं, वहां भी धड़ल्ले से गोहत्या का कारोबार चल रहा है। इससे स्पष्ट है कि केवल कानून बना देने से गोवंश को कटने से रोका जाना असंभव है। गोवंश के पर्यावरणीय, आर्थिक एवं सामाजिक महत्व के व्यावहारिक रूप का क्रियान्वयन आज समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

वर्तमान समय में गोहत्या निषेध कानून के बावजूद पुलिस, प्रशासन और गोहत्यारों की मिलीभगत से गोहत्या और गोतस्करी का कारोबार देश के अनेक प्रांतों में धड़ल्ले से जारी है। विशेषकर, उत्तर भारत के अनेक राज्यों में, जहां गोहत्या अपराध है, उन राज्यों से रोजाना बड़ी संख्या में गोवंश ट्रकों में लादकर अवैध रूप से कटने के लिए बंगलादेश की सीमा में भेजा जा रहा है। जानकारों के मुताबिक, गोहत्यारे और गोमांस के व्यवसायी गोहत्या एवं गोतस्करी निरोधक कानूनों की तोड़ निकालने के सभी संभव उपाय कर लेने में सक्षम हैं। देश में संस्थागत रूप ले चुका भ्रष्टाचार इसके पीछे की एक प्रमुख वजह है।

इस संदर्भ में गोरक्षकों के सामने चुनौती इस बात की है कि जैसे भी हो गोवंश को गोहत्यारों के हाथों में पहुंचने ही न दिया जाए। गोरक्षा का काम गोशालाओं के द्वारा संभव है। गोशालाओं में गायें उम्र भर सुरक्षित ढंग से रखी जा सकती हैं। वहां अनेक उत्पादक कार्यों में गोवंश का प्रभावी ढंग से उपयोग हो सकता है और हो रहा है। लेकिन अगर देश में गोशालाओं की वर्तमान क्षमता और उनके संसाधनों को आंका जाए तो गोशालाएं पूरे तौर पर बड़े पैमाने पर गोवंश रखने में असमर्थ हैं।

उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश में आज एक करोड़ चौवन लाख के लगभग गोवंश शेष है। इसमें से मात्र एक लाख पच्चीस हजार गोवंश लगभग 250 गोशालाओं में रह रहा है। इस प्रकार एक करोड़ तिरपन लाख गोवंश तो आज भी अन्नदाता किसान और पशुपालकों के पास ही है।
छत्तीसगढ़ में एक करोड़ अट्ठाइस लाख अट्ठासी हजार गोवंश है जिसमें से मात्र ग्यारह हजार गोवंश लगभग 62 गोशालाओं में सुरक्षित है। शेष एक करोड़ अट्ठाइस लाख सतहत्तर हजार गोवंश तो समाज अर्थात गांवों में पशुपालकों के पास है।

गुजरात राज्य में एक करोड़ नौ लाख गोवंश है जिसमें से मात्र दो लाख के करीब गोवंश राज्य के 82 गोशालाओं में शरण लिए हैं। शेष गोवंश गांवों में या कस्बों में पशुपालकों के पास है।

हरियाणा राज्य में लगभग 22 लाख गोवंश है। जिसमें से डेढ़ लाख गोवंश 255 गोशालाओं में सुरक्षित हैं। शेष ग्रामों और कस्बों में हैं।

हिमाचल प्रदेश में 29 लाख गोवंश है जिसमें से मात्र 6000 गोवंश 60 गोशालाओं के पास हैं। शेष गोवंश परिवार आश्रित हैं।

कर्नाटक राज्य में एक करोड़ उन्तालीस लाख गोवंश हैं, जिसमें से 55 हजार गोवंश 120 गोशालाओं के पास हैं। शेष समाज के पास हैं।

महाराष्ट्र में करीब दो करोड़ से अधिक गोवंश हैं जिसमें से 156 गोशालाओं में पचास हजार के करीब गोवंश रहता है। शेष गोवंश गांवों और निजी तौर पर पशुपालकों के पास हैं।

मध्य प्रदेश में तीन करोड़ के लगभग गोवंश हैं जिसमें सेमात्र 80 हजार गोवंश लगभग 500 गोशालाओं में निवास करता हैं। शेष ग्रामों और नगरों में परिवार आश्रित हैं।

ओडिशा में भी लगभग डेढ़ करोड़ गोवंश हैं जिसमें से मात्र 6000 गोवंश 6 गोशालाओं में रह रहा है।

पंजाब में पच्चीस लाख गोवंश हैं जिसमें से दो लाख पैतीस हजार गोवंश 203 गोशालाओं में रह रहा है।

राजस्थान में एक करोड़ 66 लाख गोवंश हैं जिसमें से 12 लाख गोवंश 4000 गोशालाओं में रह रहा है।

उत्तर प्रदेश में दो करोड़ 65 लाख गोवंश हैं जिसमें से मात्र 56 हजार गोवंश 351 गोशालाओं के पास है।

कुल मिलाकर देश में इस समय गोवंश की कुल संख्या पच्चीस करोड़ 11 लाख बयालीस हजार के लगभग है। इसमें से मात्र 35-36 लाख गोवंश गोशालाओं में सुरक्षित हैं। स्पष्ट है कि साढ़े चौबीस करोड़ गोवंश तो समाज अर्थात ग्राम, कस्बे और नगरों में निवास करने वाले पशुपालकों और नागरिकों के दरवाजे पर ही आश्रय लिए हुए है।

स्वाभाविक ही कहा जा सकता है कि समाज में सक्रिय गोवंश के दलालों और विक्रेताओं के द्वारा, चाहे प्रवंचनापूर्वक अथवा धन के लोभ में, गोवंश गोहत्यारों के हाथ में पहुंच रहा है।
इसमें अधिकांशत: वह गोवंश शामिल रहता है जो या तो बूढ़ा है अथवा जिन गायों ने दूध देना बंद कर दिया है। निरपयोगी गायों को पशुपालक मात्र कुछ रूपयों के लिए गोहत्यारों के हाथों में सौंप रहे हैं।

दूसरे, देश में व्यवस्थित रूप से गोशालाओं का तंत्र अभी खड़ा होने में समय है। गोशालाओं के उन्नयन और उन्हें आधुनिक गो-कृषि, चिकित्सा और ऊर्जा तकनीकी के साथ समन्वित तरीके से काम करने में व्यापक पैमाने पर विशेषज्ञों के मार्गदर्शन की आवश्यकता है।

यह इसलिए भी आवश्यक है ताकि देश में जैविक कृषि, गोदुग्ध उत्पादन, पंचगव्य आधारित चिकित्सा, ऊर्जा जरूरतों और अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुओं में गोमूत्र और गोमय का विधिपूर्वक प्रयोग व्यापक पैमान पर प्रारंभ हो सके। इस कार्य में गोशालाओं की प्रासंगिकता समय सिद्ध है।

यहां प्रश्न उठता है कि देश में गोशालाएं क्या व्यापक पैमाने पर रोजगार सृजन का माध्यम बन सकती हैं? वर्तमान परिस्थिति और प्रयोगों को देखते हुए कहा जा सकता है कि गोशालाएं देश में दैनिक जीवनोपयोगी अनेक वस्तुओं के निर्माण का आधारभूत केंद्र बनने की ओर तेजी से अग्रसर हैं।

यहां आवश्यकता इस बात की है कि गोशालाओं का प्रबंधन कुशलतापूर्वक हो। आधुनिक प्रबंधन विधा का प्रयोग कर, गोवंश के आधार पर निर्मित उत्पादों के समुचित विज्ञापन एवं विपणन की व्यवस्था कर हम गोवंश को लाभ आधारित उद्यमों में एक प्रमुख उद्यम बना सकते हैं।

विशेष रूप से जो गोवंश बड़ी मात्रा में समाज और परिवार आश्रित है, उसकी रक्षा का समुचित उपाय करने की जरूरत है। यह बात ठीक है गोरक्षा के पीछे गाय के प्रति जनसाधारण की धार्मिक आस्था का विशेष महत्व है। उसका गुणकारी दूध भी एक बड़ा कारण है। गोवंश के गुणों से मुग्ध होकर बड़े पैमाने पर भारतीय समाज गाय को घर पर पालना शुभ एवं पवित्र कार्य मानते हैं। भारतीय ग्राम आधुनिकता की इस आंधी में आज भी गोरक्षा के स्वधर्म पर अडिग दिखाई देते हैं।

लेकिन बड़ा संकट बैलों के सामने हैं जिन्हें ट्रैक्टर ने रोजगार विहीन कर दिया है। दूध न देने वाली गाय और बैल आज अनेक पशुपालकों को अपने ऊपर बोझ लगने लगते हैं। इस स्थिति के निवारण का उपाय यही है कि गोवंश पालकों को गोमूत्र और गोमय का उचित मूल्य मिले।
जिस दिन गोमूत्र और गोमय की उचित कीमत किसान और गोपालक को मिलने लगेगी तो उसकी समस्या का निवारण स्वत: हो जाएगा। एक ओर वह गोदुग्ध के उत्पादन के लिए गाय पालने का कार्य करेगा तो दूसरी ओर गोमूत्र और गोबर की उचित कीमत मिलने पर उसके लिए दुग्धविहीन गाय और बैल का पालन करना भी सहज हो जाएगा। इस प्रकार गोवंश को गोहत्यारों के हाथों में जाने से रोकना एक आसान कार्य हो सकता है।

यही वह बिंदु है जहां भारतीय व्यापारियों की श्रेष्ठ मेधा और प्रतिभा की परीक्षा होनी है। भारत के व्यापारी चिरकाल से गोसेवा और गोरक्षा के कार्य में अग्रणी रहे हैं। लेकिन आधुनिकता की आंधी में उन्होंने किंचित ही सही गोरक्षा के अपने स्वाभाविक धर्म को मात्र चंदा और गोपूजन तक सीमित कर लिया लेकिन गोवंश आधारित उद्यम भी मुनाफे के साथ चल सकते हैं, इस अवधारणा के प्रति भारतीय व्यापारियों ने उपेक्षापूर्ण रवैया अपना लिया।

इसका परिणाम यह हुआ कि आजादी के तत्काल बाद गोवंश आधारित उद्यमों का कोई पुरसाहाल नहीं रहा। गोसेवकों को चंदा तो मिला लेकिन गो आधारित उद्यमों में जिस मात्रा में निवेश होना चाहिए, वह नहीं हुआ। गोवंश आधारित उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने में जिस कुशलता की आवश्यकता होती है, उससे गोवंश वंचित हो गया।

आज जब संपूर्ण विश्व में जैविक अन्न की मांग बढ़ गई है, शस्टेनेबल विकास और जीवन पद्धति के प्रति लोग संवेदनशील हुए हैं, गोमूत्र और गोबर से अनेक बहुमूल्य उत्पाद तैयार होने लगे हैं- जैसे- गोबरगैस को सिलिंडर में भरकर उसके विपणन का कार्य देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है।

इसके अतिरिक्त जैविक खेती से उपजे अन्न के लिए समुचित बाजार की व्यवस्था, गोमूत्र के कीटनाशक, गोमूत्र फिनायल, गोमूत्र आधारित दवाएं, गोबर के पार्टिकल, गोबर से बने प्लाईवुड, गोबर सहित पंचगव्य से बनने वाली मूर्तियां, गोबर मिश्रित पदार्थ का कागज, गत्ते, खिलौने, गोबर के प्रयोग से निर्मित विविध प्रकार की खाद आदि सैकड़ों किस्म के उत्पाद आज विविध रूप में सफलतापूर्वक बाजार में अपना स्थान बना रहे हैं।

गोवंश आधारित उत्पाद का निर्माण, विपणन एवं विज्ञापन शुद्ध रूप से मुनाफे पर आधारित औद्योगिक एवं व्यापारिक कार्य है। इस कार्य में कुशल उद्यमियों एवं व्यापारियों की सक्रियता समय की मांग है। गोमूत्र और गोबर की उचित कीमत गोपालक को तभी मिल सकती है जबकि गोवंश आधारित उत्पाद व्यापक पैमाने पर अपना बाजार बना सकें।

आज सामान्य तौर पर अनेक स्थानों पर 5 रूपये प्रति लीटर गोमूत्र और चार से पांच रूपये प्रति किलो गोबर की कीमत गोपालकों को मिलने लगी है। यह कार्य अगर देश के सभी प्रमुख राज्यों में भलीभांति प्रारंभ हो जाए तो गोवंश की रक्षा में यह मील का पत्थर बन सकता है। देश के अनेक राज्यों में इस प्रकार से गोमूत्र एवं गोबर की बिक्री कर गोपालक एवं गोशालाएं आय अर्जन करने लगी हैं।

एक गाय प्रतिदिन न्यूनतम 5 लीटर मूत्र एवं 7 से 8 किलो तक गोबर देती है, इस प्रकार प्रति गाय या बैल गोपालक को प्रतिदिन न्यूनतम 100 रूपये तक सहज ही आय हो सकती है। संप्रति 24 करोड़ गोवंश देश के ग्रामों और कस्बों में गोपालकों के पास है, उसकी रक्षा की दिशा में गोमूत्र और गोबर का बिक्रय क्रांतिकारी रूप से सहायक हो सकता है।

गोवंश आधारित उत्पादों के निर्माण एवं विक्रय के काम को कुशलतापूर्वक करने और इसे विज्ञापित करने में कुशल उद्यमियों की ओर आज गोमाता टकटकी लगाए देख रही है। कभी समय था गोमाता ने अपनी रक्षा के लिए सम्राटों के दरवाजे खटखटाए, संतों-धर्मात्माओं के सामने गोमाता ने जीवन रक्षा की गुहार लगाई, धर्म के आधार पर गोरक्षा के लिए तत्पर समाज का सहारा लिया, लेकिन इस कलिकाल में जब घोर आर्थिक युग आ गया, जब धन के लिए पिता-पुत्र, भाई-भाई तक एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं, तब गोमाता रक्षा के लिए किसके पास जाए? जाहिर है, जब अर्थ यानी धन की चाहत ने उसे विनाश की ओर धकेला है तो धन ही उसके बचने का आधार भी बन सकता है। यहीं पर हमारे व्यापारिक वर्ग पर गोरक्षा का महान दायित्व आ जाता है

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