शिखर पर तमाम जगह खाली है लेकिन वह पहुचने की लिफ्ट कही नहीं है वहां एक एक कदम सीढ़ियों के रस्ते ही जाना होगा

Friday, June 4, 2010

‘राजमाता माइनो’ की ‘लाल साड़ी’ से खफा कांग्रेस



प्रकाश झा की फिल्म में कैटरीना का किरदार हो या फिर जेवियर मोरो की किताब.. द रेड साड़ी, दोनों में एक बात समान है और वो है सोनिया की इमेज को लेकर कांग्रेस की फिक्र।कांग्रेस परेशान है। परेशानी की वजह है स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की किताब लाल साड़ी,जो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर लिखी गई है।
कांग्रेस का कहना है कि इसमें तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया गया है। कांग्रेस ने इसके लिए ज़ेवियर मोरो को नोटिस भी भेज दिया है। इस किताब पर आपत्ति जता रही कांग्रेस,भारत में इसका प्रकाशन रोकने की कोशिश में जुटी है।

लेखक जेवियर मोरो का दावा है कि यह एक उपन्यास है, हिस्ट्री नहीं। उनका कहना है कि कांग्रेस तो चाहेगी कि सोनिया को दिल्ली में पैदा हुई ब्राह्मण बताया जाए। खुद मोरो का मानना है कि उन्हें कांग्रेस पार्टी की तरफ से धमकी भरे ईमेल्स भेजे गए हैं, जिसमें किताब की कई लाइनों पर नाराजगी जताई गई है। उन्होंने कहा है कि वह नोटिस भेजने वाले अभिषेक सिंघवी पर केस दायर करेंगे।

इस केस की अगुआई कर रहे सीनियर वकील और कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी औरउनके सहयोगियों का कहना है कि किताब में बेमतलब के और मनगढ़ंत किस्से रचे गए हैं। सब कुछ ऐसे पेश किया गया है, जैसे वाकई हुआ हो। मोरो इसे बायोग्राफी बताकर बेच रहे हैं,जिससे गलत इमेज बनती है। किताब में संजय गांधी को गालियां बकते और सोनिया को राजीव की मौत के बाद इटली चले जाने की सोचते दिखाया गया है। न सिर्फ यह किताब झूठ का पुलिंदा है, बल्कि इसे सच बताकर पेश किया गया है। मामला नेहरू-गांधी फैमिली की इज्जत से खिलवाड़ का बनता है।
ज्ञातव्य है की स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की किताब एल सारी रोसो यानी द रेड सारी,सोनिया गांधी की जिंदगी पर लिखी गई नॉवेल नुमा किताब है। यह 2008 में छपी थी। इटैलियन, फ्रेंच और डच में इसकी दो लाख से ज्यादा कॉपियां बिक चुकी हैं और अब इसका इंगलिश ट्रांसलेशन छपने के लिए तैयार है। मोरो और उनके पब्लिशर्स को लीगल नोटिस मिला है, जिसमें किताब वापस लेने को कहा गया है।
किताब के टाइटल में जिस लाल साड़ी का जिक्र है, उसे लेखक के मुताबिक पंडित नेहरू ने जेल में बुना था और सोनिया ने अपनी शादी के दिन पहना था। यह कहानी है, इटली के एक छोटे से गांव में पैदा हुई लड़की के हैरतअंगेज सफर की जिसे शक्ति तो मिली, लेकिन मौतों के सिलसिले से गुजरकर। किताब का सब-टाइटल है- लाइफ इज द प्राइस ऑफ पावर यानी ताकत की कीमत है जिंदगी।

आज रिलीज हो रही प्रकाश झा की फिल्म राजनीति को कांग्रेस की टेढ़ी नजर का सामना करनापड़ा है। हालांकि नेहरू-गांधी फैमिली ने सीधे कुछ कहने से परहेज किया है, लेकिन कांग्रेसी अपनी नाराजगी छुपा नहीं रहे हैं। माना जाता है कि फिल्म में काट-छांट की गई है। झा सेंसर की सख्ती से खफा हैं।


इमर्जेंसी के दिनों में ' किस्सा कुर्सी का ' बनाकर सरकार का डंडा खा चुके जगमोहन मूंदड़ा का इरादासोनिया पर इसी नाम से फिल्म बनाने का था। सोनिया के रोल के लिए इटैलियन ऐ क्ट्रेस मोनिकाबलुची को साइन भी कर लिया गया था। फिर मूंदड़ा ने सोनिया से मुलाकात की और कुछ ही दिन बादउन्हें सिंघवी का नोटिस मिल गया। कई बरस हो गए , इस फिल्म का जिक्र नहीं हुआ।
बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने मोरो की किताब के विषयवस्तु पर टिप्पणी करतेहुए कहा कि कांग्रेस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए। प्रसाद नेशुक्रवार को रिलीज होने वाली फिल्म 'राजनीति' का उल्लेख करते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड में कांग्रेस के सदस्यों ने इस फिल्म से जबर्दस्ती कुछ अंश कटवा दिए। कांग्रेस का ऐसा रवैयाआपातकाल के दिनों की याद दिलाता है, जब प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई थी और कुछ वरिष्ठ संपादकों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
लेकिन मामला कांग्रेस का है तो उसके मानदंड बदल गए हैं। दरअसल इस किताब के लेखक मोरो नेलिखा है कि राजीव की मौत ने सोनिया को झकझोर दिया था। वो सब कुछ समेट कर, वापस इटलीजाने की सोचने लगी थीं। कांग्रेस के लिए ये बात पूरी तरह गलत है। उसका तर्क है की एक जीवितशख्सियत की जिंदगी को काल्पनिक बनाने की कोशिश ठीक नहीं है। बात सोनिया गांधी से जुड़ी हुई है,इसलिए भी ये बात बढ़ गई है। सवाल बड़ा सीधा सा है कि क्या किसी व्यक्ति विशेष का कद लोकतंत्र से भी बड़ा हो सकता है।

No comments:

Post a Comment