शिखर पर तमाम जगह खाली है लेकिन वह पहुचने की लिफ्ट कही नहीं है वहां एक एक कदम सीढ़ियों के रस्ते ही जाना होगा

Wednesday, June 16, 2010

सर्कस: अस्तित्व पर संकट


केशव यादव

हाईटेक दौर ने आज मनोरंजन के उस साधन पर अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है जो कभी चकाचौंध भरे मंच पर अपने रोमांचक करतब और कारनामों से दर्शकों को हैरान ही नहीं करता था, हंसाता भी था और जानवरों को अपने इशारों पर नचाता था। यह है सर्कस, जिसे इतिहास के पन्नों में सिमट जाने का डर सता रहा है। एक समय था जब सर्कस मनोरंजन का प्रमुख साधन था। लेकिन आज टेलीविजन तथा इंटरनेट के दौर में सर्कस का मनोरंजन हाशिए पर पहुंच गया है। दर्शकों और समुचित मंच के अभाव के कारण प्रतिभाशाली कलाकार सर्कस से दूर होते जा रहे हैं।
अपोलो सर्कस के प्रबंधक रमेश तिरूला कहते हैं ''पहले सर्कस जिस शहर में जाता था वहां धूम मच जाती थी। लगभग हर दिन सर्कस के लोग पशुओं को लेकर शहर में जुलूस निकालते थे। जोकर भी साथ होते थे। यह सब प्रचार के लिए होता था। अब तो लाउडस्पीकर लेकर शहर में निकल ही नहीं सकते।'' रमेश बताते हैं ''जानवर सर्कस का मुख्य आकर्षण होते थे। अब सरकार ने सर्कस में जानवरों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। टीवी, वीडियो गेम और इंटरनेट ने रही सही कसर पूरी कर दी। आखिर दर्शक क्या देखने के लिए सर्कस आएंगे- सर्कस से कोई क्यों जुड़ना चाहेगा।'' सर्कस उद्योग से जुड़े लोग मानते हैं कि सरकारी समर्थन नहीं मिलने और नई प्रतिभाओं की कमी भी इस उद्योग को लाचार बना रही है जिसके कारण इस उद्योग से जुड़े लोग अन्यत्र विकल्प तलाश रहे हैं।

भारत में अब चंद सर्कस कम्पनियां ही रह गई हैं जिन्हें भी बदलते माहौल और लोगों की रूचि में बदलाव की वजह से अपने अस्तित्व की सबसे कठिन लड़ाई लड़नी पड़ रही है। पिछली करीब तीन शताब्दियों से दर्शकों पर अपना जादू चला रहे सर्कस की दयनीय स्थिति के बारे में जेमिनी सर्कस के मालिक अजय शंकर ने बताया ''सरकार का समर्थन नहीं मिलने की वजह से सर्कस खत्म हो रहे हैं। सर्कस के कलाकारों की खानाबदोश जिंदगी और स्थायित्व की कमी के कारण भी स्थिति बहुत विषम हो गई है।'' उन्होंने कहा''सरकार को सर्कस अकादमी का गठन करना चाहिए ताकि न सिर्फ नए कलाकारों की प्रतिभा को निखारा जा सके बल्कि दम तोड़ रहे इस पारम्परिक माध्यम में नए खून का संचार किया जा सके।''

शंकर ने कहा कि चीन और अमेरिका की तरह भारत में भी सर्कस अकादमी खोली जानी चाहिए ताकि न सिर्फ नए कलाकारों की प्रतिभा को निखारा जा सके बल्कि सर्कस में लोगों का मनोरंजन करके अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा गुजार देने वाले लोगों को प्रशिक्षक के तौर पर रोजगार भी दिया जा सके। रमेश कहते हैं ''रूस में सरकार ने सर्कस को पुनर्जीवित करने के लिए प्रमुख शहरों में केंद्र स्थापित किए हैं जहां पूरे साल सर्कस चलता है। यहां भी ऐसे ही प्रयास किए जाने चाहिए।'' सर्कस रूपहले पर्दे पर और छोटे पर्दे पर भी अपना जादू बिखेर चुका है। राजकपूर की ''मेरा नाम जोकर'' और छोटे पर्दे पर शाहरुख खान अभिनीत धारावाहिक ''सर्कस'' को लोगों ने खूब पसंद किया। शंकर ने कहा कि अगर समय रहते समुचित कदम नहीं उठाए गए तो मनोरंजन का यह अनोखा माध्यम इतिहास के पन्नों में खो जाएगा।

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